Poem on indian army by Narendra prasad

मेरा दर्द ना जाने कोई.....By a soldier..ए भीड में रहने वाले इन्सानएक बार वर्दी पहन के दिखाऑर्डर के चक्रव्यूह में सेछुटी काट कर के तो दिखारात के घुप्प अँधेरे में जब दुनिया सोती हैतू मुस्तैद खड़ा जाग के तो दिखाबाॅर्डर की ठंडी हवा में चलकरघर की तरफ मुड़ के तो दिखाघर से चलने ले पहले वाइफ कोअगली छुट्टी के सपने तो दिखाकल छुट्टी आउंगा बोलकेबच्चों को फोन पे ही चाॅकलेट खिला के तो दिखाथकी हुई आखों से याद करने वालेमां बाप को अपना मुस्कुराता चेहरा तो दिखाये सब करते समयदुश्मनकी गोली सीने पर लेकर तो दिखाआखिरी सांस लेते समयतिरंगे को सलाम करके तो दिखाछुट्टी से लौटते वक्त बच्चों के आंसू, माँ बाप की बेबसी, पत्नी की लाचारी को नज़रअंदाज कर के तो दिखासरकार कहती है शहीद की परिभाषा नही हैदम है तो भगत सिंह बन के तो दिखाबेबस लाचार बना दिया है देश के सैनिक कोविपति के अलावा कभी उसको याद करके तो दिखारेगिस्तान की गर्मी, हिमालय की ठंडक्या होती है वहां आकर तो दिखाजगलं में दगंल, नक्सलियों का मगंलकभी अम्बुश में एक रात बैठ कर तो दिखायह वर्दी मेरी आन बान और शान हैमेरी पहचान का तमाशा दुनियां को ना दिखादेश पर मर मिट कर भी मुझे शहीद न कहने वाले,अगर दम है तो एक बार वर्दी पहन के तो दिखा....एक सैनिक की अपनी पहचान के लिए जंग जारी.....

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